भारत आज दुनिया के लिए एक
बाज़ार बन गया गया है हर देश ये जनता है की भारत में कुछ भी बिक सकता है, चाहे
देश के नेता हो या देश के अधिकारी भारत में सब बिकता है|
ऐसा क्यों है की हम
दुनिया के लिए एक बाज़ार बन गए है क्या हमारे पास किसी भी चीज़ की कमी है ? आज हमारा देश
दुनिया के सबसे जायदा Tallent person देने
में नंबर एक पर है लकिन फिर भी हमारा देश एक
बाज़ार है हम अपनी लिए सारी चीज़े खुद क्यों
नहीं बनाते है |
क्या हम कामचोर है ऐसा
कुछ भी नहीं है हम बस आलसी है हम अपना कम दुसरो पर निर्भर करते है ,गूगल को अमेरिका
ने बनया लकिन वहा सबसे ज्यादा भारतीय है, क्या हमारे देश के scientist नहीं बना
सकते है?? बना सकते है लकिन बनाना नहीं चाहते यह पर कोई काम नहीं करना चाहता है उअर
ये विदेश जाकर सारे काम अच्छे से करते है हमारे
देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने Digital india की योजना बनायीं जिसके तहत भारत
में हर उस व्यक्ति को मौका मिलेगा जिसमे कुछ
करने की लगन हो फिर आज देश के सारे IIT में पढ़ने वाले बच्चे अमेरिका जैसे देश में
पैसा कमाने के लिए जाते है क्या वह india
में पैसा नहीं कमा सकते लकिन उन्हें देश से
ज्यादा पैसो की जरुरत है आज अमेरिका के पास सब कुछ है क्योकि वहा के लोग पहले अपने
देश को priority देते है और वो चाहते है की हमारे देश में किसी को किसी भी वस्तु
के लिए दुसरो के पास न जाना पड़े |
भारत में इतनी कुव्वत है कि वह मौजूदा कृषि उत्पादन में १0 गुना का इजाफा कर सके। इस्राइल में खेती योग्य जमीन पर प्रति वर्ग किलोमीटर कृषि उत्पादन से ५.८ मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई होती है। भारत में यह केवल ८८,000 अमेरिकी डॉलर है। २00६-0७ के आर्थिक सर्वे ने कृषि क्षेत्र की कुछ ढांचागत कमोजरियों की ओर इशारा किया है, जिसमें गेहूं और चावल की यादा उपज वाली नई प्रजातियों की घटती उपज क्षमता, फर्टिलाइजरों का असंतुलित इस्तेमाल, बीजों की वापसी के कम दाम और कमोबेश सभी फसलों की प्रति यूनिट एरिया में कम होती उपज शामिल हैं। कृषि विकास पर भी बुरा असर पड़ा है क्योंकि बुआई की कुल जमीन का तकरीबन ६५ फीसदी हिस्सा अभी बरसात पर ही निर्भर है।
भारत में इतनी कुव्वत है कि वह मौजूदा कृषि उत्पादन में १0 गुना का इजाफा कर सके। इस्राइल में खेती योग्य जमीन पर प्रति वर्ग किलोमीटर कृषि उत्पादन से ५.८ मिलियन अमेरिकी डॉलर की कमाई होती है। भारत में यह केवल ८८,000 अमेरिकी डॉलर है। २00६-0७ के आर्थिक सर्वे ने कृषि क्षेत्र की कुछ ढांचागत कमोजरियों की ओर इशारा किया है, जिसमें गेहूं और चावल की यादा उपज वाली नई प्रजातियों की घटती उपज क्षमता, फर्टिलाइजरों का असंतुलित इस्तेमाल, बीजों की वापसी के कम दाम और कमोबेश सभी फसलों की प्रति यूनिट एरिया में कम होती उपज शामिल हैं। कृषि विकास पर भी बुरा असर पड़ा है क्योंकि बुआई की कुल जमीन का तकरीबन ६५ फीसदी हिस्सा अभी बरसात पर ही निर्भर है।
एेसी ही कहानी पानी की भी है। भारत
हर साल मिलने वाले ४000 बिलियन क्यूबिक मीटर ताजे
पानी का केवल एक चौथाई हिस्सा ही इस्तेमाल कर पाता है। इसकी वजह सीमित जमीनी दायरे
तक इसकी पहुंच, जल संसाधनों का असमान वितरण और कम
बांध क्षमता हैं। कृषि उत्पादन में इस्तेमाल पानी के महज १४वें हिस्से को ही
बेहतरीन श्रेणी में रखा जा सकता है।
भारत को
कायाकल्प कर सकने वाली तकनीकों पर अपना ध्यान कें्िरत करना चाहिए। मेरे विचार से, आधुनिक
दवाओं, वैकिल्पक
ऊर्जाओं, नेटवर्क
कम्युनिकेशन, पब्लिक
ट्रांसपोर्ट, प्रदर्शनकारी
पदार्थो, बायोटेक्नॉलजी, नैनोटेक्नॉलजी, रोबोटिक्स, ऑटोमेशन
और एयरोस्पेस के क्षेत्रों में खास ध्यान दिए जाने की जरूरत है।
हमारा सपना एक ऐसे विकसित भारत
का सपना है जिसमें जनसंख्या का परिमाण स्थिर होगा जनता का मत व्यवहार जाति और धर्म
के आधार पर नहीं बल्कि सरकार की नीतियों, उपलब्धियों एवं दक्षता के मूल्याँकन के आधार पर होगा।
भारतीय राजनीति में ये सर्वप्रमुख आवश्यकता है जब जनता में राष्ट्रीयता और विकास
के प्रति ऐसी भावना जागृत की जा सके जब राजनैतिक दल जनता को जाति, धर्म, नृजातियता एवं समुदाय या
संप्रदाय के आधार पर विभाजित न कर सकें। यदि ऐसा हुआ तभी राष्ट्रीय विकास के
लक्ष्यों को प्राप्त करना सम्भव हो पायेगा। सामाजिक, आर्थिक लक्ष्य राजनैतिक प्रणाली
निर्धारित करती है और राजनीति में सरकार का चुना जाना जनता पर निर्भर करता है जब
जनता शिक्षित होगी राष्ट्रीय हितों के
प्रति जागरुक होगी तो वो ऐसे
नेता चुनेगी जिनका दृष्टिकोण विकास उन्मुख एवं राष्ट्रीयता से परिपूर्ण हो और जो
किसी जाति किसी सम्प्रदाय के प्रतिनिधि न बनकर राष्ट्रीय विकास की संकल्पना का
प्रतिनिधित्व करे। अर्थात विकसित भारत के सपने के पीछे छुपी हुई असंख्य
पूर्वापेक्षायें हैं जिनका पूर्ण होना आवश्यक है।
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